क्या पृथ्वीराज चौहान राष्ट्र भक्त था ?
. भारत में आम जनता को कुछ जानकारियाँ बेहद दोषपूर्ण ढंग से दी जाती हैं, इसमें इतिहास को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करना और किसी घटना की वजह की बेहद चतुराईपूर्ण ढंग से गलत व्याख्या करना मुख्य रूप से शामिल है. भारत की आम जनता को तमाम तरीकों से ये बताने कि कोशिश की गयी है कि पृथ्वीराज चौहान एक देशभक्त राजा था जिसे एक अफगानी मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी ने अनेकों बार आक्रमण कर के पराजित किया था और पृथ्वीराज चौहान ने बाद में शब्द भेदी बाण चला कर मोहम्मद गोरी की हत्या कर दी थी.
. चलिए अब जानते हैं कि मामला आखिर था क्या. पहली बात तो ये आप जान लें कि मैकाले के अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के पहले राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति जैसी किसी भी भावना, सोच, या विचारधारा का भारत में कहीं अता-पता भी नहीं था. भारत के शासक छोटे छोटे राज्यों में विभक्त थे, और जितनी भूमि पर वे शासन करते थे बस उसी को अपना राष्ट्र कहते थे, अखण्ड भारत जैसी कोई सोच विकसित ही नहीं हुई थी, ये राजपूत राजा अपने छोटे से राज्यों के लिए आपस में ही लड़ते मरते रहते थे, ये मुख्यतः बेहद अहंकारी थे और धन, स्त्री और राज्य के लिए आपस में ही लूट घसोट मचाये रहते थे.
. ये अपने ऊपर और अपनी झूठी शानोशौकत पर जनता की गाढ़ी कमाई को उड़ाते रहते थे, जनता की हालत बेहद खराब थी, विशेष कर कथित दलित जातियों की हालत नर्क से भी बदतर थी, ये जातियां अपने दयनीय जीवन को अपनी नियति मानती थीं, इनके पास खाने तक को नहीं था और राजपूत राजा ऐसी जिंदगी जीते थे कि आज बिलगेट्स भी शरमा जाएँ.
. चूंकि इन राजा महाराजाओं के पास कोई खास काम नहीं होता था इन्हें अपने हरम में अधिक से अधिक स्त्रियां रखने का शौक होता था, और ये भी शान का प्रतीक थीं, ये राजा अपने महल में भांड कवि रखा करते थे, इन भांड कवियों का केवल एक काम था कि राजा की अतिश्योक्ति पूर्ण प्रशंसा करना, इन्हें इसी के लिए रखा जाता था, आल्ह खण्ड और चन्द्रवरदायी द्वारा लिखित ग्रन्थ पृथ्वीराज रासो इसी प्रकार के ग्रन्थ हैं जो भांड कवियों द्वारा अपने आश्रयदाता राजा की प्रशंसा में लिखे गये हैं. आज कल मोदी जी की प्रशंसा में जो गीत लिखे जा रहे हैं वो भी भांड कवियों द्वारा ही लिखे जा रहें हैं, इसकी भारत में एक पुरानी परंपरा रही है. इन ग्रंथों में गीत इतने अतिश्योक्ति पूर्ण हैं कि आप दांतों तले ऊँगली दबा लेंगे.
. इसके अतिरिक्त ये कवि नारी शरीर के भी सूख्चम चित्र उतारते थे और अपने अश्रदाताओं को सुनाया करते थे, इस कारण इन राजाओं के अंदर कामवासना हमेशा प्रबल रूप में विधमान रहती थी, कोई विशेष कार्य ना होने पर ये अपने शरीर के वर्जिश, सौंदर्य, पडोसी राज्यों को लूटने अथवा किसी सुन्दर स्त्री के हरण की योजना बनाया करते थे.
. पृथ्वीराज चौहान को एक भांड कवि द्वारा कन्नौज के राजा जयचन्द कि पुत्री संयोगिता की सुन्दरता के बारे में पता चला, संयोगिता की सुन्दरता का अतिश्योक्ति पूर्ण वर्णन सुन कर पृथ्वीराज चौहान ने उसे पाने के लिए जुगत भिड़ाना प्रारम्भ कर दिया, पृथ्वीराज चौहान ने कन्नौज राज्य को कमजोर जान कर संयोगिता का बल पूर्वक अपहरण कर लिया, एक कमजोर राज्य का कमजोर पिता कर भी क्या सकता था., उसकी मदद किसी भी पड़ोसी राज्य द्वारा नहीं की गयी, भांड कवियों द्वारा ये भी लिखा गया है कि संयोगिता खुद पृथ्वीराज चौहान को चाहती थी और दोनों के बीच पत्रों का आदान प्रदान होता था, ये केवल भांड कवि चन्द्रवरदायी द्वारा अपने आश्रयदाता एव मित्र पृथ्वीराज चौहान को, बल पूर्वक एक स्त्री के हरण के दोष से बचाने के लिए लिखा गया है.
. जब पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध किसी भी शासक ने जयचन्द की मदद नहीं की तब जयचन्द ने मोहम्मद गोरी से मदद मांगी, साथी शासकों द्वारा मदद ना करने पर जयचन्द विदेशी मदद मांगने को मजबूर हुआ, मोहम्मद गौरी ने 1191 में भारत पर आक्रमण किया और तराइन के पहले युद्ध में उसे हार का सामना करना पडा, क्यों कि उसे पृथ्वीराज चौहान की शक्ति का अंदाज़ा नहीं था, किन्तु अगले ही वर्ष, 1192 में, गौरी ने पुनः आक्रमण किया, गौरी एक बड़ी सेना के साथ आया था, पृथ्वीराज ने गौरी से युद्ध विराम का आग्रह किया, किन्तु गौरी ने उसे ठुकरा दिया, ये सही है कि उसने रस्ते में राज्यों को लूटा लेकिन उसे अपनी सेना का खर्च भी वहन करना था , एक बड़ी लड़ाई में गौरी विजय हुआ और पृथ्वी राज को बंधक बना कर ले गया. और रास्ते में ही पृथ्वीराज चौहान की हत्या कर दी गयी, वापस अफ़गानिस्तान लौटते समय झेलम नदी के किनारे मोहम्मद गौरी ने कुछ समय के विश्राम हेतु अपनी सेना को रोका, जहाँ झेलम नदी के किनारे खोखरों के एक समूह द्वारा मोहम्मद गौरी की रात्रि में सोते समय खंजरों से हत्या कर दी गयी.
. इस पूरी कहानी से स्पष्ट है कि ये राष्ट्र भक्ति या देश प्रेम की कहानी नहीं है. चन्द्रवरदाई द्वारा लिखे गये पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान द्वारा अफगानिस्तान में शब्द भेदी बाण चला कर मोहम्मद गौरी की हत्या करना केवल मनघडन्त घटना है, चन्द्रवरदाई ने खुद को अफ़गानिस्तान में पृथ्वीराज चौहान के साथ बताया है जहाँ दोनों एक दूसरे की हत्या करते हैं, जब कि ऐतिहासिक रूप से मोहम्मद गोरी की हत्या पहले ही झेलम नदी के किनारे खोखरो के समूह द्वारा कर दी गयी थी, असल में प्रथिव्राज रासो को बाद में जल्हण द्वारा लिखा गया है, जल्हण ,चंदवरदाई का पुत्र था , जल्हण ऐसा लिखता है कि चन्द्रवरदाई अपनी पुस्तक को अपने पुत्र जल्हण को सौंप गया था जिसने बाद में ये अतिश्योक्ति पूर्ण घटना लिखी जिसका इतिहास से कोई लेना देना नहीं है.
. असल में जिस कहानी को देशप्रेम और राष्ट्रीयता का रंग दे कर बताया जाता है और हिंदी धारावाहिक इसे खूब नमक मिर्च लगा कर प्रस्तुत करते हैं, वो एक शक्तिशाली राजा पृथ्वीराज चौहान द्वारा एक कमजोर बाप की लड़की का बलपूर्वक हरण एवं एक लाचार बाप द्वारा अपनी बेटी की अस्मत के बदले विदेशी शासक मुहम्मंद गौरी से मांगी गयी एक मदद भर थी, पृथ्वी राज चौहान को मोहम्मद गौरी द्वारा बेहद चतुराई एवं बुद्धिमता से पराजित कर दिया गया, गौरी का युद्ध कौशल अद्दुतिय था, गौरी ने जयचन्द की मदद अपनी जान दे कर भी की, यदि इसे केवल एक कथा भी माना जाये तो नाटक के नायकत्व के आधार पर मोहम्मद गौरी कहानी के असली नायक के रूप में उभरता है ना की एक स्त्री का बलपूर्वक हरण करने वाला पृथ्वीराज चौहान.
*रानी चौधरी*