अगर गंगा में
नहाने से पाप धुलते हैं तो याकूब मेनन को फाँसी क्यों?
अगर गंगा में नहाने से पाप धुलते हैं तो याकूब मेनन को फाँसी
क्यों दी गयी ? २२ वर्ष तक उसे कैद में रखने की क्या जरुरत थी? उसे गंगा में
नहलाते और पाप मुक्त घोषित करते हुए विदा करते. और अगर ये मान लिया जाये की गंगा
में नहाने से पाप नहीं धुलते तो फिर गंगा स्नान का पाखण्ड क्यों? क्यों पाप धुलने का
लालच दे कर हर साल करोडों लोगों को मूर्ख बनाया जाता है? ये अन्धविश्वासी लोग,
गंगा किनारे बैठे पण्डे और पुजारियों को अपनी मेहनत से कमाई हुई रकम दे कर चले आते
हैं.
अगर सच में पाप नहीं धुलते हैं तो जो
पण्डे और पुजारी गंगा में डुबकी लगवाते हैं, पूजा पाठ करवाते हैं और इसके बदले में
मोटी रकम वसूलते हैं, वो उपभोक्ताओं के साथ धोखा-धडी कर रहे हैं, उपभोक्ताओं को वह
सामान बेचा जा रहा है जो वास्तव में काम ही नहीं करता, उपभोक्ताओं के पाप ही नहीं
धुल रहे. और मन्त्रों का क्या? मंत्र पाप से मुक्त नहीं करते, यदि नहीं करते तो पढ़े क्यों जाते हैं? और अगर
करते हैं तो फाँसी क्यों? तो क्या फाँसी प्रतिशोध है? तो क्या याकूब मेनन के साथ
प्रतिशोध लिया गया?
अब अगर समर्थन में ये कहा जाये कि बड़े पाप
नहीं धुलते, छोटे पाप धुले जा सकते हैं तो फिर अभी तक वो लिस्ट क्यों नहीं जारी की
गयी जिसमे ‘’धुले जा सकने वाले’’ और ‘’ना धुले जा सकने वाले’’ पापों का विवरण हो.
इससे पापी लोग वो लिस्ट देख कर ‘’गंगा नहाने’’ और ‘’ना नहाने’’ का निर्णय कर सकते
हैं. इससे उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण होगा. इससे एक अन्य फायदा और होगा, ऐसे
पापों को, जिन्हें गंगा में नहा के धोया जा सकता हो उन पापों से सम्बंधित
मुकद्दमों को न्यायालयों में स्वीकार ही ना किया जाये. ऐसे पापियों को गंगा में
नहला कर दोषमुक्त कर दिया जाये. इससे न्यायालयों के ऊपर मुकद्दमों का बोझ भी काफी
हद तक कम होगा.
अब एक प्रश्न और उठता है कि अगर गंगा में
छोटे मोटे पाप धोए जा सकते हैं तो फिर पाप करने में हर्जा क्या है, फिर भय कैसा? लिस्ट में धोए जा सकने वाले पापों को देखिये और
साल भर खूब पाप कीजिये, अन्त में जा कर गंगा नहा लीजिए, और स्वर्ग का आनंद लीजिए.
दोनों ही स्तिथियों में जवाब तो बनता ही
है, अगर गंगा नहाने से समस्त पापों से मुक्त हुआ जा सकता है तो याकूब मेनन को फाँसी
क्यों दी गयी ? क्या इसे प्रतिशोध माना जाये? और अगर गंगा नहाने से पाप नहीं धुले
जा सकते थे तो ये पाखण्ड क्यों सैकड़ों वर्षों से चल रहा है? इस अन्धविश्वास पर
लगाम कब लगेगी?
*रानी चौधरी*