जब भी बच्चो को कबीर दास जी की जीवनी पढाई जाती है तो उन्हें ये पढाया जाता है कि कबीर दास जी का जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था जिसने लोक लाज के भय से कबीर को एक नदी के किनारे फेंक दिया था, जहाँ से नीरू और नीमा नाम के मुसलमान जुलाहा दम्पति उन्हें उठा लाए और उनका पालन पोषण किया. साथ ही ये भी बता दिया जाता है की ये एक किवदंती है अर्थात ऐसा लोग कहते हैं.
अगर ये एक किवदंती है तो बच्चों को एक बे सर पैर की कहानी इतिहास के रूप में क्यों पढाई जा रही है ? इसका विरोध क्यों नहीं होता ? क्या चाल-बाज़ी और कुटिलता है इसके पीछे और पूरा मामला आखिर है क्या ?
कहानी कुछ इस प्रकार है की रामानन्द ने एक विधवा ब्राह्मणी को पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया, अब कमाल ये हुआ कि उनके आशीर्वाद से विधवा ब्रह्माणी गर्भवती हो गयी जिससे कबीर का जन्म हुआ. भाई वह ! क्या बात है ! आशीर्वाद से लड़के का जन्म ?ये मूर्खतापूर्ण और बे सर पैर की कहानी केवल बच्चो को नहीं बल्कि परास्नातक स्तर तक पढाई जाती है.
मामला ये है की कबीर जैसी महान हस्ती किस प्रकार से कथित रूप से किसी निम्न जाति के मुस्लिम जुलाहा परिवार में जन्म ले सकती है , उसे तो किसी ब्राह्मण परिवार में ही जन्म लेना चाहिए था, कबीर जैसी माहन हस्ती को जन्म देने का क्रेडिट लेने के लिए ये सारी कहानी गढ़ी गयी और परास्नातक स्तर तक इसे पढाया जा रहा है, आश्चर्य ये की इस बेहद घृणित चालबाजी पर अधिकांश लोगो का ध्यान ही नहीं जाता. इस बेहद घृणित चालबाजी के कारण कबीर को जन्म देने वाले उनके असली माँ बाप नीरू और नीमा को उनका वो सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वो वास्तव में हकदार थे, ये दुर्बल जातियों पर किया गया एक प्रकार का कुठाराघात है और ये उत्पीरण के श्रेणी में ही आता है.
कबीर से अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक बात अपनी साखियों में कही हैं , उन्होंने अपने को मुस्लिम परिवार में जन्मा बताया और जीवन भर अपने पिता के जुलाहे के कार्य को ही अपनाये रखा, अगर विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन होने की बात में जरा भी सच्चाई होती तो कबीर जैसे महान आलोचक और स्पष्ट वक्ता इसे जरुर कहीं ना कहीं कहते . लेकिन उनकी मृत्यु के बाद ये कुटिल कहानी रची गयी जो नस्लवादी और जातिवादी सरकारों द्वारा परास्नातक स्तर तक पढाई जा रही हैं, जिसका विरोध किया जाना चाहिए.
बिलकुल ऐसा ही किस्सा महाभारत के कर्ण का देखने को आता है, कर्ण का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था, उसे महभारत में शूद्र पुत्र कह कर पुकारा जाता था, कर्ण को इससे कभी आपत्ति नहीं रही, लेकिन. कर्ण जैसा माहान धनुर्धर एक दलित परिवार में कैसे जन्म ले सकता है, अतः कर्ण के साथ भी यही कुटिल चालबाजी रची गयी जब उसे कुंती की अवैध संतान बताया गया. यहाँ भी आशीर्वाद से ही कमाल हुआ था , यहाँ कुंती ने भी लोक लाज के भय से कर्ण को गंगा नदी में बहा दिया था. एक दलित परिवार से उसका सम्मान बड़ी ही कुटिलता से छीन लिया गया.
क्या आप जानते हैं कि राक्षस कुल में उत्पन्न महा विद्वान, महा शक्तिशाली राक्षस राज रावण को भी नहीं बक्शा गया है , उसे भी एक ब्राह्मण की संतान बताया गया है . अगर आप ध्यान से अनेको जीवनियों को पढ़ें तो आप को ये खेल हर तरफ दिख जायेगा. बहुत सीधी सी बात है उस समय कलम एक विशेष जाति के हाथ में ही थी , उसने अपने हित के लिए जो चाहा वो लिखा , और लोगो ने उसे माना , क्योकि लोगो को विरोध करने लायक शिक्षा ही प्राप्त करने का हक नहीं दिया गया, शूद्रों और स्त्री को तो शिक्षा देना ही पाप घोषित कर दिया गया था , ऐसे में इनका एकछत्र राज सा चलता था , जो अब छिन गया है.
*रानी चौधरी *