. महात्मा गाँधी का पूरा जीवन अपनी काम वासना से संघर्ष करते हुए बीता. एक ऐसा युवक जिसका विवाह बेहद कम उम्र में हो गया था लेकिन इतनी कम उम्र में हुआ विवाह भी उनकी प्रबल कामवासना को शांत ना कर सका. अपने पिता की मृत्य के समय गाँधी अपनी पत्नी के साथ रतिक्रिया में व्यस्त थे, जब की दुसरे कमरे में उनके पिता अंतिम साँस ले रहे थे. गाँधी को ये बात अच्छी तरह से पता थी की उनके पिता बेहद बीमार है और ये उनका अंतिम समय है लेकिन ऐसे समय में भी वे अपनी कामवासना के आवेश में अपने पिता की चारपाई के जगह अपनी पत्नी की चारपाई के पास थे
. आधी रात बीतने के पाश्चात् उन्हें अपने कमरे में बाहर से रोने की आवाज़ सुनाई दी तो गाँधी को अंदाज़ा हो गया की उनकी पिता की मृत्यु हो गयी है , अपने पिता के मृत शरीर को देख कर उन्हें स्वम से घृणा हो गयी. इस घटना के पाश्चात् वो गहरे चिंतन मनन में डूब गये और इस घटना के लिए उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से अपनी प्रबल कामवासना के साथ अपनी पत्नी को भी दोषी माना, एवं अपनी पत्नी से स्वम को मुक्त करने के लिए प्रार्थना की.
गाँधी को इस घटना के बाद अपनी कामवासना दिख गयी और वो जीवन भर इससे मुक्त होने के लिए उपाए करते रहे, असल में उनका पूरा जीवन उनका अपनी कामवासना से संघर्ष की कहानी है, इस संघर्ष में उन्होंने दिमागी नियंत्रण द्वारा वासना से छूटने का प्रयास किया जो पूर्ण रूप से सफल ना हो सका, तब उन्होंने अपने शरीर को सुखाना शुरू कर दिया. उन्होंने भोजन बेहद कम कर दिया और उपवास रखना शुरू कर दिया, मांसाहार छोड़ दिया एवं भोजन सात्विक हो गया.
. गाँधी का ऐसा सोचना था की अगर शरीर में उर्जा ही नहीं होगी तो कामवासना भला कैसे उठेगी, असल में उनका दुर्बल शरीर उनकी अपनी कामवासना से संघर्ष की कहानी कहता है, वे लगातार कई कई दिनों तक उपवास करते थे ताकि शरीर में उर्जा ही ना रहे और वासना ना उठे. उनके द्वारा किये गये सभी आमरण अनशन और उपवास बहुत गहरे में अपने लिए किये गया प्रयास थे, वे उपवास की पराकाष्ठा तक जाना चाहते थे. शरीर को जादा से जादा नुकसान पंहुचा कर भी कामवासना से सघर्ष को जीतना चाहते थे, भारत के आजादी के संघर्ष में उपवास रखने के लिए कई वजहें उपलब्ध थीं . अगर मांगे नहीं मानी जाती थी तो उपवास आमरण अनशन बन जाता था, लोकतंत्र जैसी महान सोच दुनिया को देने वाले अँगरेज़, गाँधी के इस आमरण अनशन से घबरा जाते थे , वे अपनी नस्ल पर किसी कथित धार्मिक आदमी की हत्या का कलंक नहीं ले सकते थे, अतः गाँधी की अधिकांश मांगो को थोड़ा बहुत संसोधन के साथ स्वीकार कर लिया जाता था, असल में गाँधी के अभुद्दय में अँगरेज़ सरकार का होना बहुत बड़ा धनात्मक बिंदु था
. इधर गाँधी को अपने उपवास की उच्चतम क्षमता देखने को मिल जाती थी, वे ये देखना चाहते थे की उपवास की अवस्था में जब उर्जा बिलकुल शून्य हो गयी हो तब भी क्या कामवासना उठती है? भारत एक धार्मिक देश है , यहाँ लोग ऐसे लोगो की पूजा करते है जो उपवास रखते है,सात्विक भोजन करते हैं ,और ईस्वर की प्यास में अपना शरीर सुखा डालते हैं. गाँधी में ये सारी खूबियां मौजूद थी , चूंकि अँगरेज़ सरकार से अपनी मांगे मनवाने के लिए वे उपवास का सहारा लेते थे ,तब वे अहिंसा के पुजारी के रूप में प्रसिद्धि पा गये.
. दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से अपनी मृत्यु तक वे अपनी कामवासना से मुक्त ना हो सके , उनका पूरा जीवन इसी संघर्ष में गुजर गया की कामवासना नष्ट हुई या नहीं, इसके लिए वे तरह तरह के परीक्षण किया करते थे, गाँधी के आश्रम में कई विदेशी महिलाएं थीं जो गाँधी के अहिंसा सिद्धांत के आकर्षण में खिचीं चली आयीं थी, ये ना केवल पूरे आश्रम में संचालन और साफ़ सफाई का ध्यान रखती थीं, बल्कि गाँधी का भी विशेष ख़याल रखती थीं,. गाँधी अधिकांशतः इन्ही महिलाओं के कंधे का सहारा ले कर चलते थे, गाँधी मीडिया से मिलते थे , कुछ कहते थे और यही महिलाएं इन्हें सहारा दे कर अंदर आश्रम में ले जाती थीं.
. गाँधी आश्रम में महिलाओं के साथ नग्न सोते थे ( गाँधी द्वारा इसे स्वीकार किया गया है जो तारीफ़ के काबिल है ) वो ऐसा इस लिए करते थे ताकि वो ये जान सकें की उनकी कामवासना नष्ट हुई की नहीं अथवा वो उस पर नियंत्रण के काबिल हुए या नहीं. उनके इन कृत्यों ने उनके आश्रम में कई महिलाओं को मानसिक बीमार बना दिया था. गाँधी का पूरा जीवन वास्तव में उनकी कामवासना से लड़ाई की कहानी है जिसने आश्चर्यजनक रूप से उन्हें दुनिया में महात्मा और अहिंसा के पुजारी के रूप में ख्याति दिला दी.
. निश्चित ही महात्मा गाँधी का भारत की आज़ादी में महत्वपूर्ण योगदान था , वजह चाहें जो भी रही हों लेकिन भारत में अंग्रेजो की सत्ता को उन्होंने अपने सत्याग्रह से हिला कर रख दिया था , पूरी दुनिया में भारत को बुद्ध , महावीर के बाद गाँधी के नाम से भी जाना जाता हैं, भारत की जनता उनके भारत के आज़ादी के लिए किये गये अमूल्य योगदान की सदेव आभारी रहेंगी'
महात्मा गाँधी की पुस्तक " सत्य के प्रयोग " से मनोविश्लेषणवादी समीक्षा
*रानी चौधरी *