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केंद्र सरकार और निजीकरण के पीछे का काला सच - रानी चौधरी


केंद्र सरकार और निजीकरण के पीछे का काला सच
भारत की आज़ादी के समय से ही एक काम बड़ी ही चालाकी के साथ किया जा रहा है , इसके लिए बहुत संयम रखा गया और बेहद चतुराई से से इस काम को अंजाम दिया गया , भारत में लोकतंत्र की स्थापना के साथ ही भारत के लोगो से एक बहुत ही बड़ा झूठ बोला गया की सरकारी तंत्र , सरकारी कर्मचारी , सरकारी संस्थाएं , सरकारी कम्पनियाँ मक्कार, भ्रष्ट और काम करने में अक्षम हैं , यहाँ तक की संसद में बैठे नेतागण और पूरी संसदीय प्रणाली ही भ्रष्ट, नकारा और कामचोर है.
आम भारतीय को ये भी समझाया गया की देश का विकास केवल निजी क्षेत्र के कंपनियां ही कर सकती हैं, इसके लिए सहारा लिया गया मीडिया का, ये ज्ञात हो कि सभी न्यूज़ चैनल्स निजी हैं, सभी अखबार निजी संस्थाओं द्वारा संचालित है, इसमें बैठे हुए लोगो ने विभिन्न माध्यमो द्वारा जनता के दिमाग में ये बात भरी की सरकारी संस्थाएं भ्रष्ट हैं. ऑफिस ऑफिस जैसा धारावाहिक इसी बात का प्रमाण है , इसमें सरकारी कार्यालयों में व्याप्त भ्रस्टाचार को दिखाया गया था. ये काम पिछले ६५ सालों से किया जा रहा है , और आम आदमी अब ये मान चुका है की निजीकरण द्वारा ही इस देश का भला हो सकता है.
समस्या ये है कि मामला एक तरफ़ा है , मीडिया हमेशा सरकारी कर्मचारियों ,सरकारी संस्थाओं की कमियां तो दिखाता है , लेकिन निजी क्षेत्र में फैसले भ्रस्टाचार और जनता के शोषण के छुपे हुए तरीको पर कभी कुछ नहीं कहता, निजी संस्थाओं द्वारा भारत की जनता का भर भर कर शोषण किया जा रहा है लेकिन आप को कभी न्यूज़ इस पर देखने को नहीं मिलेगी क्यों कि पूरा मीडिया निजी संस्थाओं के हाथों में है, इसका काम ही जनता को अपने हिसाब से चलाना है, ये निजी संस्थाएं जो जनता का शोषण कर रही हैं वो अपन न्यूज़ चैनल और अखबार भी चलाती हैं और पूरे देश की ख़बरों को नियन्त्रित करती हैं. हाल में हुए लोकसभा के चुनावों को अपने हित को ध्यान में रखते हुए किस प्रकार से निजी मीडिया संस्थाओं के द्वारा नियन्त्रित किया गया ये इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है


६५ सालों से जिन सरकारी कर्मचारियों को मीडिया भ्रष्ट, नाकारा , मूर्ख बताती है ,उन्ही कर्मचारियों को भर्ती करने के लिए निजी क्षेत्र की कम्पनियाँ विभिन्न प्रलोभन देती हैं , भारत में सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया बेहद जटिल है , कोई भी आम आदमी इतनी जल्दी सरकारी नौकरियों में जगह नहीं बना पाता , पूरे देश में १०० पदों के लिए होने वाली नियक्ति में १० लाख तक प्रतिभागी बैठते हैं , और उनमे से १०० का चयन किया जाता है , आप खुद ही अंदाज़ा लगा सकते हैं की ये १०० चयनित प्रतिभागी कोयले की खान से निकले हीरे के सामान होते हैं, इनका बुद्धि कौशल अपने स्तर की परीक्षा में सर्वश्रेष्ठ होता है, जब की इसके विपरीत निजी संस्थानों में नियुक्तियाँ अधिकांशतः जान पहचान के आधार पर होती हैं , इनके पास नियक्ति का कोई सही ढंग और व्यवस्था नहीं है, इनके कर्मचारी सरकारी क्षेत्र के किसी भी कर्मचारी का मुकाबला करने में सक्षम नहीं होते हैं, जो भी निजी क्षेत्र का कर्मचारी प्रतिभाशाली होता है वो सरकारी क्षेत्र के कंपनी में चुने जाते ही निजी क्षेत्र की कंपनी से पीछा छुडा लेता है, वो निजी क्षेत्र में फैले भ्रस्टाचार और शोषण को अच्छी तरह से पहचान जाता है.
सरकारी तंत्र में हर स्तर के कर्मचारी का काम निश्चित होता है, उसका एक निश्चित पे- स्केल होता है, वह अपने किये किसी भी कार्य के लिए जिमेदार होता है , आप अगर बैंक में चले जाएँ तो आप को पता है कि कौन कैशियर है और कौन ब्रांच मेनेज़ार. लेकिन निजी बैंक में आप कभी पता नहीं लगा पाएंगे कि कौन कैशियर है और कौन ब्रांच मैनेज़र. सरकारी संस्थाओं में किसी भी कर्मचारी के खिलाफ आप लिखित कारवाही करते हैं तो जिसे आप लाल फीताशाही कहते हैं उसका ही कमाल है की हमारे जैसे एक आम आदमी के गन्दी लेखनी में लिखे गये पत्र पर उस कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही अवश्य होती है ,लेकिन अगर आप किसी निजी बैंक में चले जाएँ तो आप इनके खिलाफ अगर कोई पत्र भी लिखें तो उस पर कारवाही इसी शर्त पर हो सकती है कि निजी कंपनी का कोई नुकसान तो नहीं हो रहा , आप का हो रहा हो तो उनकी बला से, जादा है तो कोर्ट जाइये या मुह बंद कर के बैठे रहिये ,ध्यान रहे कि निजी संस्थाएं मानवता के हित के लिए काम करने नहीं बैठी हैं , उन्हें केवल पैसे से मतलब है , आप को कोल्ड्रिंक सर्व करना केवल मछली फ़साने जैसा काम है. अगर आप निजी कंपनी का कोई सिम कार्ड इस्तेमाल करते हैं तो आप को निजी क्षेत्र का वास्तविक अनुभव हो जायेगा.
निजीकरण के पीछे एक और गहरी साजिश है, वो है संविधान में आरक्षण की व्यवस्था को नुकसान पहुचाना , भारत एक जातिवादी देश है, यहाँ सरकारें जाति कि इंजीनियरिंग से बनती और बिगड़ती हैं, ये बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि भारत के एक गणतंत्र बनने के बाद से ही आरक्षण को समाप्त करने के विभिन्न उपाए किये जा रहे है ताकि वंचित तबके को अधिकारों से वंचित किया जा सके, निजीकरण सबसे बेहतर कुठाराघात है, सभी निजी संस्थाएं मूलतः भारत की अगड़ी जातियों द्वारा संचालित हैं, फिर चाहें वो मीडिया हो या कोई और निजी संसथान. ये निजी संस्थाएं और इसमें बैठे लोग टीवी और अख़बारों के माध्यम से लोगो के मस्तिष्क को अपने हित के अनुरूप ढालते हैं , इन निजी संस्थओं में बैठे लोग कभी नहीं चाहते की वंचित तबका किसी भी प्रकार आगे आए, पूरा मीडिया इसी काम को अंजाम देने में लगा हुआ है. अगर आप निजी संस्थानों में नियुक्त कर्मचारियों को देखें तो आप को पता लगेगा कि उनमे से ९८ % मुख्यतः अगड़ी जातियों से हैं ,जो २% दलित वर्ग से हैं वो भी अपनी जातियों को छुपा कर ही नियुक्त हुए हैं अन्यथा वे नियुक्ति नहीं पा सकते थे, जो निजी क्षेत्र प्रतिभा को ही नियक्ति का आधार बताता है वो लगभग सभी की नियक्ति जान पहचान, जाति और पहुच के आधार पर करता है
निजीकरण के साथ ही सभी दलित और पिछड़ी जातियां ये समझ लें कि उनके हाथ से सभी अधिकार छिन जायेंगे, सामाजिक न्याय के लिए जो आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी, और जिस आरक्षण का लाभ ले कर जो दलित और पिछड़ा वर्ग थोड़ा सा स्थान भी बना पाया है वो भी निजीकरण के साथ ही पुनः गर्त में समा जायेगा, इस बात को पूरे देश की जनता को समझ लेना चाहिए कि सरकारी संस्थाओं में कोई कमी नहीं है , इसके कर्मचारी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हैं , कार्यप्रणाली भी बेहतर है, बस इन कर्मचारियों का सही इस्तेमाल करने वाला शासक चाहिए. अगर इनका सही इस्तेमाल किया जाये तो निजी क्षेत्र की कोई भी कंपनी सरकारी कंपनी के आंगे ठहर नहीं सकती है. अगर आप सरकारी न्यूज़ चैनल दूरदर्शन में न्यूज़ सुने तो आप को पता चल जायेगा कि उनका स्तर कितना उच्च कोटि का है ,वही निजी न्यूज़ चैनल पैसे के लालच में देश का बेड़ा गर्क करने में लगे हुए हैं, उन्हें पैसे चाहिए किसी भी कीमत पर, देश की कीमत पर भी, इस लिए जाग जाइये.

*रानी चौधरी *