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बाबा या भू-माफ़िया


                 आजादी के बाद वर्ष 1950 में जमींदारी प्रथा को खत्म करने के मकसद से एक कानून बनाया गया था जो 1952 में पूरी तरह से लागू हुआ. असल में तब समस्या यह थी कि चंद लोगों के पास जमीनें ही जमीनें थीं जबकि बाकी भूमिहीन थे. कानून का मकसद था कि यह असंतुलन दूर हो और दलित व गरीब भूमिहीनों को भी खेती के लिए जमीन मिले.  लेकिन रामदेव जो कर रहे हैं वह एक झलक है कि किस तरह वही क्रूर जमींदारी प्रथा एक नयी शक्ल में फिर से सिर उठा रही है.
                बाबा राम देव ने साल 2004 वित्तीय वर्ष में सिर्फ छह लाख 73 हजार मूल्य की दवाओं की बिक्री दिखाई और इस पर करीब 54 हजार रुपये बिक्री कर दिया गया.  जब हरिद्वार के डाकघरों  से सूचनाएं मंगवाईं गयी तो पता चला कि ‘’ दिव्य फार्मेसी ने उस साल 3353 पार्सलों के जरिए 2509 किग्रा माल बाहर भेजा था. इन पार्सलों के अलावा 13,13,000 हजार मूल्य के वीपीपी पार्सल भेजे गए थे. इसी साल फार्मेसी को 17,50,000 हजार के मनीआर्डर भी आए थे, मामला कम से कम 5 करोड़ रु के बिक्रीकर की चोरी का था,'' दिव्य फार्मेसी द्वारा बनाई जा रही 285 तरह की दवाएं और अन्य उत्पाद इंटरनेट से भी भेजे जाने लगे हैं. जिनका कोई हिसाब किताब नहीं है.
               रामदेव को जितना बिक्री कर देना चाहिए, वे उसका एक अंश भी नहीं दे रहे. ‘’ करों को बचा कर ही काला धन पैदा होता है’’ और इस काले धन का सबसे अधिक निवेश जमीनों में किया जाता है रामदेव के ट्रस्टों ने हरिद्वार और रुड़की तहसील के कई गांवों, नगर क्षेत्र और औद्योगिक क्षेत्र में जमकर जमीनें और संपत्तियां ली हैं.


               शांतरशाह नगर और उसके आसपास रामदेव के पास 1000 बीघा से अधिक जमीन है. लेकिन बाबा के सहयोगियों और ट्रस्टों के नाम पर खातों में केवल 360 बीघा जमीन ही दर्ज हैरामदेव, उनके रिश्तेदारों और आचार्य बालकृष्ण ने शांतरशाह नगर के आसपास कई गांवों में बेनामी जमीनों पर पैसा लगाया है.
               गगन कुमार, आचार्य बालकृष्ण के पीए हैं. गगन कुमार को मात्र 8000 रु पगार मिलती है , 8000 रूपए महीना पगार वाले गगन कुमार जी आयकर रिटर्न भी नहीं भरते हैं . लेकिन गगन कुमार जी ने 15 जनवरी, 2011 को शांतरशाह नगर में 1.446 हेक्टेयर भूमि अपने नाम खरीदी. रजिस्ट्री में इस जमीन का बाजार भाव 35 लाख रु दिखाया गया है, परंतु हरिद्वार के भू-व्यवसायियों के अनुसार किसी भी हाल में यह जमीन 5 करोड़  रुपये से कम की नहीं है. 8000 रूपए पाने वाला आचार्य बालकृष्ण का पीए, 5 करोड़ की जमीन अपने नाम से खरीद रहा है.
               औरंगाबाद गांव के पूर्व प्रधान अजब सिंह चौहान दावा करते हैं कि ‘’ उनके गांव में बाबा के ट्रस्ट और उनके लोगों के कब्जे में 2000 बीघे के लगभग भूमि है. लेकिन राजस्व अभिलेखों में रामदेव, आचार्य बालकृष्ण या उनके ट्रस्टों के नाम पर एक बीघा भूमि भी दर्ज नहीं है.’’  तेलीवाला गांव में 2116 खातेदारों के पास कुल 9300 बीघा जमीन है. गांव के 330 गरीब भूमिहीनों के नाम सरकार से कभी पट्टों पर मिली 750 बीघा कृषि-भूमि या घर बनाने योग्य भूमि है. लेखपाल जैन्मी बताते हैं कि ‘’जमीनें बेचने के बाद गांव के खातेदारों में से सैकड़ों किसान भूमिहीन हो गए हैं. गांववालों के अनुसार गांव की कुल भूमि का बड़ा हिस्सा रामदेव के पतंजलि योगपीठ के कब्जे में है.’’
               बाबा का पतंजलि फूड पार्क लिमिटेड लगभग 700 बीघा जमीन पर है. 98करोड़ के इस प्रोजेक्ट पर केंद्र के फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय से 50 करोड़ रु की सब्सिडी (सहायता) मिली है. नौ कंपनियों के इस समूह में अधिकांश कंपनियां रामदेव के नजदीकियों द्वारा बनाई गई हैं. मां कामाख्या हर्बल लिमिटेड में रामदेव के जीजा यशदेव आर्य, योगी फार्मेसी के निदेशक सुनील कुमार चतुर्वेदी और संजय शर्मा जैसे रामदेव के बेहद करीबी ही निदेशक हैं.
               फूड पार्क के उद्घाटन के समय रामदेव ने केंद्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्री के सामने घोषणा की थी कि वे हर साल उत्तराखंड से 1000 करोड़ की जड़ी-बूटियां या कृषि उत्पाद खरीदेंगे. परंतु बाबा ने सरकार से करोड़ों रुपये की सब्सिडी खा कर भी वादा नहीं निभाया, जड़ी-बूटी उत्पादक सुदर्शन कठैत का आरोप है कि ‘’ बाबा ने उत्तराखंड में अभी एक लाख रुपये की जड़ी-बूटियां भी नहीं खरीदी हैं.’’
               रामदेव ने हरिद्वार के दौलतपुर और उसके पास के गांवों जैसे बहाद्दरपुर सैनी,जमालपुर सैनीबाग, रामखेड़ा, हजारा और कलियर जैसे कई गांवों में भी बड़ी मात्रा में नामी- बेनामी जमीनें खरीदी हैं. प्रापर्टी बाजार के दिग्गज दावा करते हैं कि ‘’ हरिद्वार में कम से कम 20हजार बीघा जमीन बाबा के कब्जे में है. लेकिन रामदेव के ट्रस्टों के नाम पर राजस्व अभिलेखों में हरिद्वार में लगभग 400 बीघा भूमि ही दर्ज है ’’  इसका जवाब देते हुए कर विशेषज्ञ बताते हैं कि ‘’जमीनों का दाखिल-खारिज कराते ही बाबा की जमीनें आयकर विभाग की नजरों में आ सकती थीं इसलिए विभाग की संभावित जांचों से बचने के लिए इन जमीनों को दाखिल-खारिज करा कर राजस्व अभिलेखों में दर्ज नहीं कराया  गया है.'' 
              रामदेव के ट्रस्टों और कंपनियों ने हरिद्वार में हजारों रजिस्ट्रियां की हैं और यदि सारे मामलों की जांच की जाए तो उन पर स्टांप चोरी के रूप में करोड़ों रु निकलेंगे. कम स्टाम्प शुल्क लगाने में पकड़े गए एक मामले में हरिद्वार के उपजिलाधिकारी ने पतंजलि योगपीठ पर स्टाम्प चोरी और अर्थदंड के रूप में करीब 55 लाख रु का जुर्माना भी लगाया था. झूठे तथ्यों के आधार पर जमीन के सौदों में 90 फीसदी से भी ज्यादा स्टांप शुल्क की चोरी की गई. पतंजलि योगपीठ के पास बन रहे महंगे फ्लैटों में भी लोग बाबा की साझेदारी बताते हैं.
               रामदेव के विरुद्ध फेमा के मामले दर्ज हुए थे, और बालकृष्ण के विरुद्ध सीबीआई जांच शुरू हुई थी, लेकिन केंद्र में RSS समर्थित BJP सरकार आ जाने की बाद से मामला ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया.  देश और विदेश में जमकर काला धन लगाने वाले बाबा रामदेव तत्कालीन काँग्रेस सरकार को ब्लैकमेल करके अपने विरुद्ध कार्रवाई न होने देने का दबाव बनाने के लिए देश भर में काले धन का विरोध करते घूम रहे थे, लेकिन केंद्र में BJP की सरकार आने की बाद से काले धन के मुद्दे पर बोलना बंद हो गया.
              काले धन का इस्तेमाल करके रामदेव ने सारी जमीनें उसी तरह खरीदी हैं जैसे एक भू-व्यवसायी, भू-माफिया  या उद्योगपति खरीदता है. हरिद्वार की कई महंगी बेनामी संपत्तियों से बाबा का संबंध बताया जाता है. बाबा द्वारा खरीदी गयी हजारों एकड़ भूमि में अगरहर बीघा पर दो लाख रुपये भी सर्कल रेट से अधिक दिए गए होंगे तो रामदेव ने हरिद्वार में ही जमीनों पर कम से कम 400 करोड़ रु का काला धन लगाया है
               शांतरशाह नगर, बहेड़ी राजपूताना और बोंगला में भी अनुसूचित जाति के किसानों की जमीनें खरीद कर उन्हें भूमिहीन किया गया. रामदेव ने जमीनों को खरीदने के लिए कानून के उन्हीं छेदों का सहारा लिया है जिनका इस्तेमाल भू-माफिया अनुसूचित जाति के गरीब किसानों की जमीन छीनने में करते हैं. बढेड़ी राजपूतान गांव निवासी कल्लू के चार पुत्रों में से तीन ने वर्ष 2007 से लेकर 2009 के बीच जमीन को बंधक रख बैंक से ऋण लेना दिखाया है. बाद में ऋण अदायगी के नाम पर इन किसानों को भूमि बेचने की इजाजत उपजिलाधिकारी से दिलाई गयी और यह भूमि पतंजलि योगपीठ ने ले ली. अब ये परिवार भूमिहीन हैं.
               रामदेव ने फिर उत्तराखंड सरकार से हरिद्वार जिले के तेलीवाला, औरंगाबाद,हजारा ग्रांट, अन्यगी आदि गांवों में 125 हेक्टेयर (1875 बीघा) भूमि खरीदने की अनुमति मांगी है. वास्तव में ये जमीनें बाबा ने अपने लिए इकट्ठा करवा कर कब्जे में ले रखी हैं. अब उन्हें खरीद का वैधानिक रूप देना है. इनमें से ज्यादातर अनुसूचित जाति के किसानों की हैं
              नए कानून के मुताबिक अब अनुसूचित जाति के किसानो की जमीन भी अन्य जातिओं के लोग खरीद सकते हैं, ये संसोधन करने के बाद अब पूरे देश में दलित किसान आजादी के बाद से एक बार फिर से भूमिहीन हो जायेंगे, क्यों कि उनकी जमीन जोर जबरजस्ती से या अधिक पैसा दे कर बाबा जैसे लोगों द्वारा और भू माफिया व्यापारियों द्वारा हड़प ली जाएँगी, और वो भी पूरे कानूनी तरीके से.
               1950 में लाया गया जमीदारी उन्मूलन कानून  पूरी तरह से बर्बाद कर दिया गया है, डॉ अम्बेडकर के बाद से भारत में दलितों को आवाज़ देने वाला एक भी मसीहा अवतरित नहीं हुआ, जिसका परिणाम दलित जातियाँ देख रही हैं. केंद्र में ब्राह्मणवादी सरकार है, जिसके पीछे RSS का खेल चल रहा है. सरकारों, मीडिया घरानों से लेकर उच्च न्यायलय और उच्तम न्यायलयों तक में ब्राह्मणवाद का बोलबाला है, सभी निर्णय और कानून दलितों के विरुद्ध आ रहे हैं, दलितों की आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है, और इसका मुख्य कारण दलितों द्वारा अपमान सहने पर भी हिन्दू धर्म में बने रहना है, ब्राह्मणवादी सरकारों पर भरोसा करना और उन्हें समर्थन देना है, बेचारे भोले भाले दलित नहीं जानते की rss जैसे सगठनो के खाने के दांत और दिखाने के दांत अलग अलग हैं,  बाबा राम देव द्वारा जो जमीन हथियाई गयी हैं वो अधिकांशतः दलित जातियों की हैं. इन दलित जातिओं को आवाज़ कौन दे भला, जब मीडिया खुद ब्राह्मण वादियों के हाथों में है.
               आज आवश्यकता दलितों द्वारा बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन की है, ब्राह्मणवादियों  द्वारा इस्लामिक आतंकवाद का जो फर्जी ड्रामा ब्राह्मणवादी मीडिया की सहायता से I.B. और RSS ने फैलाया है, उस ड्रामे का ही परिणाम है की इस देशा में समाज सुधार की जो बयार चली थी वो पूरी तरह से समाप्त हो गयी है, आज आम आदमी इस्लामिक आतकवाद के भूत से डरा हुआ है, इस कारण से दलित और पिछड़ी जातियां जो ब्राह्मण धर्म के असामनता और अपमान को छोड़ कर तेज़ी से बौद्ध और इस्लाम की तरफ जा रही थी अचानक ही इस्लामिक आतंकवाद से हिन्दू धर्म को बचाने के लिए खड़ी हो गयी हैं, ब्राह्मणवादियों द्वारा सदेव ही ये खेल खेला जाता है जिसमे दलित और पिछड़े प्यादों के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं. दंगो के समय इन्हें ही मरने के लिए छोड़ दिया जाता है.  भारत के लोगों को ये समझने में ५० साल लग जायेंगे की भारत में इस्लामिक आतंकवाद वास्तव में है ही नहीं. दलित और पिछड़े अपनी मूर्खता से सदैव ब्राह्मण वादियों के हाथ का खिलौना बने रहेंगे.

January 22, 2014 को तहलका पत्रिका के अंक पर आधारित समीक्षा

*रानी चौधरी*