योगा से ना होगा by रानी चौधरी
. किसी चीज़ के पुराने होने से उसके अच्छे होने से क्या लेना देना है? और किसी चीज़ के नए होने से उस चीज़ के खाराब होने का क्या लेना है? कोई चीज़ पुरानी होकर भी बुरी हो सकती है और कोई अन्य चीज़ नयी होकर भी अच्छी हो सकती है. अगर मेरी दृष्टी से देखा जाये तो नयी चीज़ के अच्छे होने की सम्भावना कहीं जादा है, या यूं कहूँ कि बहुत जादा है. इस तरह से पुराना होना अच्छे होने का प्रमाण नहीं है.
. योग के सम्बन्ध में जो सबसे मजबूत तर्क दिया जाता है वो ये है कि ये हजारों सालों पुरानी ऋषि परंपरा से आया है, इस लिए ये बड़ा असरदार है, चमत्कारिक है. अगर थोड़ी तार्किक दृष्टी से देखा जाये और थोड़ा भी तथस्ट होकर चिंतन किया जाये तो आपको ये आसानी से पता लगेगा कि योग के प्रभाव को बहुत जादा बढ़ा चढा कर प्रस्तुत किया गया है. योग वास्तव में स्वीमिंग, जॉगिंग और रनिंग जैसे मेहनत के व्यायामो के बनिस्पत १०% के बराबर भी असरदार नहीं है.
. प्रश्न ये है कि आखिर ५ हजार साल पुरानी ऋषि परंपरा से आया हुआ योग अचानक कैसे विलुप्त प्रायः हो गया था? डार्विन कहता है कि इस संसार में जो भी कार्य या कारण महत्वपूर्ण, उपयोगी अथवा कार्ययोग ना होगा, वो नष्ट प्रायः हो जायेगा. समय के साथ योग के नष्ट या लुप्त्प्रायः हो जाने का कारण उसका समय के साथ उपयोगी ना रहना ही था, जिसे बाद में बाबा रामदेव जैसे लोगों द्वारा अपने व्यावसायिक हित, धार्मिक एवम राजनीतिक उददेशों की पूर्ती हेतु पुनर्जीवित किया गया.
. असल में जैसे जैसे समय बदलता गया, योग का प्रभाव घटता गया, क्यों कि लोगों ने इसे बदलते समय के साथ- साथ निरुपयोगी पाया, जो ये तर्क दिए जाते हैं कि योग हमारी महान प्राचीन परम्परा की खोज है जिसे समय के साथ भुला दिया गया और वो विलुप्त प्रायः हो गया , क्यों कि भारत पर विदेशियों के आक्रमण हुए.. वास्तव में ..... ये तर्क बहुत ही कुंद है, क्यों कि भारत ने प्राचीन परंपरा से आया हुआ बहुत सारा कचरा अभी भी समेटा हुआ है, लेकिन योग खो गया था, क्यों......... क्यों कि वो निरुपयोगी हो गया था, लोगों ने समय के साथ साथ ये जान लिया था कि इसका प्रभाव शरीर पर केवल तभी होता है जब आप प्रकृति वातावरण में रह रहे हों , और बिलकुल साधारण भोजन कर रहे हों, ना नौकरी, ना धंधा ना कोई चिंता ना फिकर........तब निश्चित ही ये प्रभावकारी हैं.
. योग ऋषि परंपरा से आया हुआ बताया जाता है, ये ऋषि वो थे जो एक ही जगह पर बैठे बैठे व्यायाम के फायदों का पूरा आनंद लेना चाहते थे, अपने हाथ पैरों को मोड कर अपनी नशों में खिचाव और स्वांस द्वारा वो स्वीमिंग, जॉगिंग और रनिंग के फायदे बिना मेहनत के लेने के लिए उन्होंने योग को विकसित किया.
. मेहनत का कोई भी विकल्प इस संसार में उपलब्ध नहीं है, स्वीमिंग, जॉगिंग और रनिंग जैसे मेहनत के व्यायामों की जगह कभी योग नहीं ले सकता है. मेहनत के व्यायामों से जो पसीना निकलता है और तेज स्वांस से जो जादा से जादा ऑक्सीजन शरीर में जाती है, सारा खेल बस इसी का है, योग में एक जगह बैठ का बस जादा से जादा यही करने का प्रयास किया जाता है कि आपके शरीर में जादा से जादा ऑक्सीजन पहुचाई जाये, ये केवल शरीर विज्ञान है, आप स्वीमिंग, जॉगिंग और रनिंग कर के कहीं जादा औक्सीजन अपने शरीर में पंहुचा सकते हैं, और पसीने के साथ टॉक्सिन बाहर आ जायेंगे. इसके साथ आपके मस्तिष्क से ऐसे रसायन निकलने लगते हैं जो आप को खुशी का एहसास दिलाते हैं और आप कहीं जादा सकारात्मक हो जाते हैं, जिससे ना केवल आप की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है बल्कि आपको अपनी बिमारियों से उबरने की शक्ति भी मिलती है.
. इसके विपरीत अगर आप देखें तो आप पाएंगे कि योग में शरीर से पसीना निकालने के लिए कुछ योग गुरु बंद कमरों में अधिक तापमान का इस्तमाल करते हैं ताकि पसीना आ सके, ये योग गुरु विदेशों में १ लाख रूपए महीना तक लेते हैं, लोग अधिक तापमान पर पसीना बहाते है और अनुलोम विलोम करते हैं, जिससे जादा ऑक्सीजन शरीर में पहुचती है, बाहर आने पर उन्हें वही स्वीमिंग, जॉगिंग और रनिंग वाले व्यायाम का एहसास होता है, अगर दिमाग पर थोड़ा भी जोर डाला जाये तो आप को समझ में आ जायगा योग का खेल.. असल में मेहनत पसीना और ऑक्सीजन आप को सेहतमंद बनाते हैं.
. मैंने स्वं योग किया है, और मै अपने अनुभव के आधार पर कहती हूँ की योग के चमत्कारिक होने का दावा केवल एक क्षलावा है, ये व्यायाम का विकल्प नहीं है, ये मेहनत का विकल्प नहीं है, ये स्वीमिंग, जॉगिंग और रनिंग का विकल्प नहीं है. एक तो ये बहुत समय खाता है, इस भाग दौड और तनाव भरे जीवन में निरुपयोगी है, मैंने स्वीमिंग, जॉगिंग और रनिंग की है, और इस व्यायाम के असर को कुछ ही दिनों में महसूस किया है, मै आज भी जॉगिंग करती हूँ और योग को ९ साल पहले ही छोड़ चुकी हूँ. वे लोग जो शरीर से स्थूल हैं और स्वीमिंग, जॉगिंग और रनिंग नहीं कर सकते हैं, वे निश्चित ही योग करें, क्यों कि उनके पास विकल्प नहीं हैं , लेकिन जो स्वीमिंग, जॉगिंग और रनिंग कर सकते हैं, वो इसे ही अपनाएं, विस्वास रखिये आप योग करने की अपेक्षा कहीं जादा स्वस्थ, सकारात्मक और खुश रहेंगे.
. निश्चित ही योग के प्रभावों को बहुत जादा बढ़ा चढा कर प्रस्तुत किया गया है, योग को चमत्कारिक बताये जाने के पीछे असल में राजनीतिक, धार्मिक प्रचार-प्रसार. और व्यवसायिक कारण मुख्य हैं, जो पर्दे के पीछे छुपे हुए हैं. और इसकी आड़ में बहुत सारे खेल हो रहे हैं. जो आम आदमी की समझ से परे हैं, अपने अतीत को देख कर खुश होने वाला भारतीय समाज इसी में खुश रहता है कि उसके पुरखों ने कोई बहुत बड़ी खोज कर ली थी, लेकिन यही समाज पूरी दुनिया को विज्ञान के नाम पर कुछ नहीं दे सका है, उसका कारण उनका अतीत की तरफ देखना है, और दुनिया भविष्य की तरफ देख रही है. भारत की जनता को योग थमा कर बाबा लोग ऐसे खुश हैं मानो उन्होंने मंगल पर घर बना लिया हो. ये कुंठित समाज की निशानी है जो अपने अतीत से खुश होता रहता है क्यों कि उसे भविष्य में कुछ नजर नहीं आता.
. योग के चमत्कारिक दावों की तार्किक समीक्षा
*रानी चौधरी*
*रानी चौधरी*