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जाने कैसे होता है परिषदीय विधालयों में ड्रेस वितरण में भ्रष्टाचार - रानी चौधरी


जाने कैसे होता है परिषदीय विधालयों में ड्रेस वितरण में भ्रष्टाचार

. क्या आप जानते हैं की प्राथमिक विधालयों में हर वर्ष सरकार की तरफ से २ ड्रेस के लिए धन स्कूल के खाते में भेजा जाता है , हेड मास्टर का ये काम होता है की वो प्रधान के माध्यम से धन निकाल कर बच्चो की ड्रेस बनवाए और बच्चो को वितरित करे, ये धन अक्टूबर और नवंबर के आस पास आता है .

. अब देखिये की पैसो का खेल कहा से शुरू होता है , स्कूल के हर बच्चे के लिए 2 ड्रेस के लिए 400/- रूपए आते है. एक ड्रेस की कीमत हुई 200/- रूपए , लेकिन धन खातों में आते ही मार्केट में दलाल शक्रिया हो जाते हैं, और हेड मास्टर को 1 ड्रेस 130/- से 140/- की रेडीमेड मिल जाती है, इस तरह 280/- में 1 बच्चे के लिए 2 ड्रेस का इंतजाम हो जाता है , हेड मास्टर को इसमें सीधे सीधे प्रति बच्चा 120/- रूपए की सीधी बचत होती है, यानि अगर स्कूल में 100 बच्चे हैं तो 12,000/- रुपये का शुद्ध लाभ, अब इसमें से अधिकारी को 20/- रूपए प्रति बच्चा चढावा हेड मास्टर को देना होता है, इस प्रकार 2000/- रूपए उन्हें दे कर भी हेड मास्टर के प्रति 100/- बच्चे 10,000/- रूपए की शुद्ध बचत हो जाती है

. और एक बात की ये जरुरी नहीं है की 100 बच्चे अगर स्कूल में नामांकित है तो मतलब 100 बच्चे ही स्कूल में आते हैं, अधिकांश मामलो में 100 बच्चे अगर नामांकित हैं तो उनमे से जादा से जादा 45 बच्चे ही स्कूल में आते हैं और उनके लिए ही ड्रेस बनवानी पड़ती है , बाकी बच्चे केवल T.C. के लिए नाम लिखा कर प्राइवेट स्कूलों में पढते हैं. 55 बच्चो का पैसा तो पूरा का पूरा हेड मास्टर की जेब में चला जाता है , आप अंदाजा लगा लें की 55 बच्चो की ड्रेस का 400/- रूपए प्रति बच्चा रूपया हुआ 22,000/- रूपए, और 45 बच्चो की ड्रेस बनवाने में बचत हुई लगभग 5,400/- रूपए, इस प्रकार ये बचत वास्तव में हुई 27,400/- रूपए, ध्यान देने वाली बात ये है की ये आंकड़े केवल 100 बच्चो के हैं जब की एक जिले में कम से कम 30,000 से 40,000 बच्चे नामांकित होते हैं. अगर पूरे जिले की बात की जाये तो ये आंकड़ा सुन कर आप के होश उड़ जायेंगे. ये रकम होती हैं लगभग 1 करोड 10 लाख रूपए ( 1,10,00,000/- ), ये 1 करोड़ 10 लाख भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ते हैं, वो भी केवल एक जिले में, जब बात पूरे उत्तर प्रदेश की होती है तो ये रकम होती है लगभग 81 करोड (81,00,00,000/-), पूरे उत्तर प्रदेश में ये रकम अक्टूबर या नवंबर माह में भ्रष्टाचार के भेंट चढ जाती है और किसी को कुछ भी पता नहीं चलता. है ना भ्रष्टाचार की कितनी बड़ी स्वीकृति हमारे समाज में ?

. आप ने प्राइमरी के बच्चो की एक बात जरुर नोटिस की होगी , की वो अपनी पैंट हमेशा सँभालते रहते है और उनकी पैंट हमेशा नीचे खिसकती रहती है . जानते हैं ऐसा क्यों है ? इसकी वजह ये है की उनमे से किसी भी बच्चे की ड्रेस की फिटिंग सही नहीं होती है. दलालो के पास कुल ३ नाप के कपडे होते हैं स्मॉल , मीडियम और लार्ज . ये दलाल हेड मास्टर से पूछ लेते हैं की कितने स्मॉल , मीडियम या लार्ज कपडे देने हैं , हेड मास्टर अंदाजे से संख्या बता देता है, और बच्चो को उनकी साइज़ देख कर कपडे बाँट दिए जाते हैं , जो कमोवेश किसी को फिट नहीं होते, किसी को कसे तो किसी को ढीले, और जो कपडा इन ड्रेस को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है उससे जादा अच्छा कपडा तो लोग कफ़न में डाल देते हैं. ये कपडा २ महीने में फट कर चिंदी चिंदी हो जाता है , और प्राइमरी के बच्चे वापस अपनी गन्दी घरेलु ड्रेस में नज़र आने लगते हैं.

श्रीमान ओशो सौरव जी के ब्लॉग से साभार

*रानी चौधरी *