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महात्मा गाँधी – हत्या के पीछे का सच - रानी चौधरी


महात्मा गाँधी – हत्या के पीछे का सच 

. गाँधी की हत्या पर काफी कुछ लिखा गया, एक सच्चाई सभी को बताई गयी है कि गाँधी की हत्या में राष्ट्रीय स्वम सेवक संघ से बड़े ही गहरे जुड़ा हुआ एक आदमी जिसका नाम नाथूराम गोडसे था मुख्य रूप से जिम्मेदार था, ये भ्रम भी फैलाया गया कि गाँधी कि हत्या इस लिए की गयी क्यों कि वो मुसलमानों के बहुत बडे समर्थक थे और पकिस्तान के बटवारे के समय उनके द्वारा दिया गया धन भारत के कट्टर हिंदू संगठन को बिलकुल रास नहीं आया, और उसने नाथू राम गोडसे को गाँधी की हत्या का काम सौंपा, असल में गोडसे को आर.एस.एस. से दूर रखा गया, उसे सगठन से नहीं जोड़ा गया, लेकिन उसे एक फिदायीन की तरह इस्तेमाल किया गया, गोडसे ये जानता था कि या तो उसे जनता द्वारा मार दिया जायेगा या उसे फांसी होगी, उसे एक निश्चित प्लान के तहत वहाँ भेजा गया, गोडसे द्वारा हत्या किये जाने के बाद आर.एस.एस. पर ऊँगली तो उठी , लेकिन कागजी तौर पर गोडसे आर.एस.एस. से जुड़ा हुआ नहीं था, वास्तव में ये चाल संगठन को बचाने के लिए थी कि गोडसे को जानबूझ कर आर.एस.एस. में कागजी तौर पर सम्मिलित नहीं किया गया था, लेकिन इसके बाद भी संगठन को फायदा पंहुचा, क्यों कि कट्टर हिंदू ये जान गये कि कोई संगठन है जो कट्टर हिंदुत्व का समर्थक है और फिदायीन हमले तक कर सकता है.

. ये तो वो सच था जिसे सभी जानते हैं, एक कहानी इसके भी पीछे चल रही थी जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं, भारत की आजादी के बाद हुए आम चुनावों के बाद से ही सरदार वल्लभ भाई पटेल प्रधानमन्त्री के पद के लिए सभी सांसदों की पहली पसंद बने हुए थे, और उनका प्रधानमंत्री बनना लगभग तय था, पंडित जवाहर लाल नेहरु इस दौड में प्रधानमंत्री के पद के दूसरे सबसे बड़े दावेदार थे, लेकिन सरदार पटेल के व्यक्तित्व और उनकी निर्णय लेने की जबरदस्त क्षमता की छवि के समक्ष वे ठहर नहीं रहे थे.

. महात्मा गाँधी सदैव से ये चाहते थे कि जवाहर लाल नेहरु ही प्रधानमन्त्री बनें, गाँधी वर्ण व्यवस्था के बहुत बड़े समर्थकों में थे, जब गाँधी से पुछा गया था कि क्या वे वर्ण व्यवस्था को मानते हैं? तब गाँधी ने बड़ा ही चतुराई पूर्ण उत्तर देते हुए कहा था “ मै वर्ण व्यवस्था को मानता नहीं हूँ , लेकिन मै उस पर विश्वास रखता हूँ “ ,गाँधी ने वर्ण व्यवस्था को बेहद चतुराई से स्वीकार करते हुए भारत में सदियों से फैली इस गंदगी को पनपने के लिए आधार मुहैया करवा दिया था. गाँधी कभी नहीं चाहते थे कि एक पिछड़ी जाति का व्यक्ति सरदार पटेल भारत का प्रधानमंत्री बने, पटेल कि अपेक्षा जवाहर लाल नेहरु कश्मीरी ब्राहमण थे, नेहरु स्वम को शुद्ध आर्य मानते थे , असल में कश्मीरी ब्राहमण स्वम को बेहद शुद्ध नस्ल मानते हैं, वे मानते हैं कि भारत के और ब्राह्मण भी आर्य हैं लेकिन कश्मीरी ब्राहमण सबसे शुद्ध है, नेहरु जाति से ब्राह्मण थे, उस पर भी कश्मीरी ब्राह्मण, ब्राह्मण के हाथ में सत्ता हो तो किसी को अटपटा नहीं लगता, सदियों से रही है, बेहद आम बात है, लेकिन किसी पिछड़ी जाति के व्यक्ति के हाथ में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री कि कुर्सी आ जाये ये गाँधी को स्वीकार नहीं था.

. पटेल का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय हो गया था, ऐसे में गाँधी ने एक बेहद चतुराई पूर्ण चाल चली, उन्होंने सभी सांसदों से कहा कि उनकी पहली पसंद नेहरु हैं, और सभी सांसदों को नेहरु का समर्थन करना चाहिए, लेकिन अगर सांसद नेहरु का समर्थन नहीं करते हैं तो मै डॉक्टर अम्बेडकर का समर्थन करूँगा, कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाये, सभी सांसद गाँधी की इस बात से घबरा गये, एक दलित जाति के व्यक्ति को कोई सांसद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर देखना नहीं चाहता था, सांसद नहीं चाहते थे कि दलित नेता और वो भी डॉक्टर अम्बेडकर जैसा क्रांतिकारी सोच वाली बौद्धिक शक्सियत प्रधानमंत्री बने, ऐसे में पासा अचानक से ही रातो रात पलट गया, और जवाहर लाल नेहरु को सभी सांसदों द्वारा एक सुर में प्रधानमंत्री चुन लिया गया, सरदार पटेल ये तमाशा देखते ही रह गये, गाँधी ने उन्हें परास्त कर दिया, पटेल को दूसरा सबसे ताकतवर ओहदा गृहमंत्री के पद के रूप में दिया गया, पटेल गाँधी की इस गद्दारी को भुला नहीं सके.

. सरदार पटेल के गृह मंत्री रहते हुए उन्होंने भारत के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए, इसी बीच गृह मंत्रालय को गाँधी की हत्या किये जाने से संबधित कुछ गुप्त सूचनाएँ प्राप्त हुई, गाँधी को सुरक्षा मुहैया करवाना बेहद आवश्यक हो गया था, सरदार पटेल गाँधी के बेहद करीबियों में से रहे थे, वे गाँधी की बड़ी इज्जत करते थे, और गाँधी को अच्छी तरह समझते भी थे, लेकिन गाँधी की गद्दारी ने उन्हें आहत कर दिया था, एक गद्दारी गांधी ने की थी, अबकी बारी पटेल की थी, उन्होंने एक चाल चली, पटेल गाँधी के पास गये और काफी लोगो के सामने गाँधी से पुछा कि उनकी जान को कुछ लोगो से खतरा है, गृह मंत्रालय चाहता है कि उनकी सुरक्षा के लिए सुरक्षा बल तैनात किये जाएँ, क्या वे चाहते हैं कि उनकी सुरक्षा के लिए सुरक्षा बलों की नियुक्ति की जाये ?

. जैसा की सरदार पटेल को पहले से पता था कि गाँधी सुरक्षा के लिए मना कर देंगे, और वैसा ही हुआ, गाँधी जैसा अहिंसक कैसे स्वम की सुरक्षा के लिए हामी भर सकता था? भले ही भीतर से वो ऐसा चाहता हो, सरदार पटेल ने पूछ कर अपना काम कर दिया, उनके दिल से बोझ भी उतर गया, की चलो मैंने अपना काम कर दिया, अब गाँधी जी ने मना कर दिया तो मै क्या कर सकता हूँ.

. रिपोर्ट मिलने के कुछ ही दिन बाद गाँधी कि हत्या कर दी गयी, गाँधी को सुरक्षा उपलब्ध नहीं करवाई गयी, एक गद्दारी गाँधी ने पटेल के साथ की, और एक पटेल ने गाँधी के साथ, बात बराबर हो गयी, लेकिन अन्त में पटेल गाँधी पर भारी पड़े, गाँधी को अपने जातिवादी वर्ण व्यवस्था के समर्थक होने की सजा मिली, गाँधी ने जो वर्ण व्यवस्था का बीज बोया था वो खुद उसी के शिकार बने, बुद्ध का ये वचन याद आता है कि “ हे मानव तू चाहें जितने हवन यज्ञ कर ले, जितने चाहें पूजा पाठ कर ले, ध्यान रख कि कोई देवता, कोई हवन यज्ञ तुझे तेरे कर्मो से, तेरे पापों से मुक्ति नहीं दिला सकता, तुझे तेरे कर्मो के फल यहीं भोगने पड़ेंगे, जो बोये पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए ?”

*रानी चौधरी*