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आखिर महिला शिक्षिकाए क्यों विधालय नहीं जाती ? - रानी चौधरी


आखिर महिला शिक्षिकाए क्यों विधालय नहीं जाती ?

. मैंने ट्रेनों में अब तक १० लाख किलोमीटर से जादा का सफर तय किया है, और हजारों लोगों से विभिन्न मुद्दों पर बात की है या उन्हें सुना है, मै इसे लोगों के विचारों को जानने का सबसे बेहतर माध्यम मानती हूँ, अभी कुछ माह पहले मै पटना से वापस लौट रही थी तब कन्नौज में मेरी ट्रेन रुकी, वहाँ से काफी संख्या में महिला शिक्षिकाएँ ट्रेन में बैठी, ये सब की सब कानपुर से कन्नौज तक अप-डाउन करती हैं ,सभी M.S.T. होल्डर्स थीं, और प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त हैं.

. कुछ समय पाश्चात् ही ट्रेन में बैठे कुछ लोगों से 2 शिक्षिकाओं की बहस हो गयी, सभी लोगों का कहना था कि महिला शिक्षिकाएँ पढ़ाती नहीं हैं, विधालय नहीं जाती, मुफ्त की तनख्वाह उठाती हैं, और दोनों शिक्षिकाएँ सफाई देने में लगी थीं कि वास्तव में ऐसा नहीं है, हम बहुत मेहनत करते हैं. दुर्भाग्य से दोनों शिक्षिकाएँ तार्किक रूप से बेहद कमजोर थी और लोगों को निरुत्तर नहीं कर पा रही थी, उस समय तो मैं इस मामले में कुछ नहीं बोली क्यों कि ये उचित भी नहीं था, असल में मामला है क्या इसे मै बताती हूँ. लोगों की आंख खुलना बहुत जरुरी है, अब अंधेरगर्दी बहुत जादा हो गयी है.

. प्रथम तो महिला शिक्षिकाओं के प्रति जो नकारात्मकता है उसका एक मात्र कारण उनका महिला होना है, भारत का समाज और भारत के लोग इस बात को हजम नहीं कर पाते कि महिलाये इतनी आसानी से धन कमाएँ और अपने पैरों पर खड़ी हों, क्यों कि इससे पुरुष सत्ता को नुकसान पहुचता है. वे महिलाओ कि छवि को नुकसान पहुचाते हैं ताकि ये बात प्रसारित की जा सके कि महिलाएं कार्य के प्रति लापरवाह होती है और काम नहीं करना चाहती. शिक्षिकाओं की छवि खराब करने के पीछे ये कारण पुरुषों के अवचेतन से कार्य करता है और कई लोगों को इसका पता भी नहीं होता कि आखिर वे इतनी निम्न कोटि कि बात कर क्यों रहे हैं . पुरुषवादी मानसिकता का मीडिया और पुरुषों का एक वर्ग इस बात को बर्दास्त नहीं कर पा रहा कि आखिर कैसे इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं ३५ हजार रूपए महीना कमा रही हैं जब कि खुद वे वहाँ नहीं पहुच पा रहे हैं .

. बात २०१२ की है जब मै अपनी मित्र के साथ उसके विधालय गयी थी, गर्मी का मौसम था और विधालय सड़क से ३.५ किलोमीटर अंदर था, एक पतली सी कच्ची पगडण्डी थी और दोनों तरफ ६ फिट ऊँची मक्का खड़ी थी, जब मै अपनी सहेली के साथ चली तो मेरा मन शशंकित हो गया, अंदर से एक भय लगा रहा था,वो रास्ता इतना सुनसान था कि कव्वे की आवाज़ भी बहुत दूर से सुनाई पड़ रही थी, मै दंग थी कि भारत सरकार एक महिला को जॉब देती है और उसकी सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं? कोई सड़क नहीं, कोई वाहन नहीं ? आखिर सरकार और जनता क्या चाहती है? कि महिला शिक्षिका को ३० हजार रूपए वेतन मिलता है तो वो बदले में अपनी इज्जत दे दे ? क्या ये सरकारें ३० हजार रूपए में महिलाओं की इज्जत का सौदा कर रही हैं ? जो लोग ये कहते हैं कि महिलाएं विधालय नहीं जाती, वे अपनी बहन और बेटियों को ऐसे विधालयों में भेजें और फिर ये बात कहें.

. ऐसे लोगों और ऐसी सरकारों पर लानत है जो महिलाओं को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध नहीं करवा सकते, लेकिन उनकी जांच के लिए अधिकारियों का एक जत्था बना रखा है और उनको गाड़ी उपलब्ध करवा रख्खी हैं, जो नियत समय पर विधालय पहुच कर शिक्षिका को निलंबित कर देते हैं.

. हम दोनों को ३.५ किलोमीटर पैदल चल कर विधालय पहुचने में करीब ४५ मिनट लगे, हम लगभग २० मिनट देर से विधालय पहुचे, मै लगभग पूरे समय विधालय में रही और एक बात मैंने नोटिस की, कि वहाँ के कुछ लड़के विधालय के आस पास जानबूझ कर मंडराते रहे, कुछ तो उछल कर विधालय की चाहरदीवारी पर बैठ गये, तो कोई गेंद लेने के बहाने छत पर चढ जाता था, ये सिलसिला शाम ४ बजे तक चलता रहा, उनके लिए शहर से आयी हुई दो लड़कियां आकर्षण का केंद्र थीं. अगर एक लड़की के द्रस्टीकोण से देखा जाये तो ये सब कुछ वास्तव में बहुत डराने वाला था खास कर उस लड़की के लिए जो अपने जिले से लगभग १०० किलोमीटर दूर नौकरी करने आयी हो. मै दंग थी की मेरी सहेली रोज यहाँ आने की हिम्मत कैसे जुटाती है.

. मेरी सहली ने एक और हैरान करने वाली बात बताई कि कई बार विधालय के ऑफिस का ताला खोलने पर अंदर इस्तमाल किये गये कंडोम पड़े मिले हैं. जिन्हें खिड़की से फेंका जाता है. लेकिन मेरी सहली ने ये बात शर्म और संकोच के कारण किसी को नहीं बताई थी.

. अब आप खुद अंदाज़ा लगा लें कि दूर दराज़ के गावों में नियुक्त शिक्षिकाओं की सुरक्षा किस कदर खतरे में हैं, आखिर दूर दराज़ के गावों में शिक्षिकाएँ क्यों नहीं जाती ? क्यों उनके खिलाफ कारवाही होती है और क्यों उन्हें बदनाम किया जाता है, कई बार जब लड़की विधालय नहीं जाती तब वही के अराजक तत्त्व बेसिक शिक्षा अधिकारी को फोन पर शिकायत करते हैं ताकि लड़की पर विभागीय करवाई हो और वो पुन आना जाना शुरू कर दे.

. हम दोनों वहाँ से जब निकले तो शाम हो चुकी थी, लगभग ५ बजे हम लोग मुख्य सड़क पर पहुचे, मुख्य सड़क तक पहुचने के बाद मैंने रहत की साँस ली, लगभग ३० मिनट बाद एक बुरी तरह से भरा हुआ टेम्पो रुका, हम लोग किसी तरह से अंदर बैठे जहाँ साँस लेने की भी जगह नहीं थी, मेरी सहेली को और ऐसे दूर दराज़ के इलाको में नौकरी करने वाली महिलाओं को ये रोज झेलना पड़ता है . मैंने अपनी सहेली से पुछा कि वो अपना स्थानान्तरण ऐसी खतरनाक जगह से क्यों नहीं करवा लेती है? तो उसका कहना था कि बेसिक शिक्षा अधिकारी इसके लिए ५० हजार रूपए मांगते हैं. इसके बिना स्थानान्तरण संभव नहीं है. अब ऐसी स्तिथि में शैक्षिक गुणवत्ता और अध्यापक उपस्तिथि की बात करना बेशर्मी है.

. मै दिल्ली में रहती हूँ और दिल्ली काफी सुरक्षित है, लेकिन उत्तर प्रदेश में हालात बेहद खराब हैं, आखिर गवरमेंट यहाँ करती क्या रहती हैं ? गावों के विधालयों तक सड़के क्यों नहीं बनाई जाती ? क्यों विधालयों तक बस और टेम्पो ऑटो की सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई जाती ? आखिर बाहर से आए शिक्चाकों के लिए कॉलोनी क्यों नहीं विकसित की जाती ? इतनी अव्यवस्था क्यों फैला कर रखी गयी है? यहाँ महिला शिक्षिकाओं को जो सहना पड़ता है ये तो उसकी बानगी भर है, सरकारें हर गाँव में विधालय तो खुलवा रही है लेकिन शिक्षकों की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है, कुछ गावं तो पूरी तरह से क्रिमनल एक्टिविटीज में लिप्त हैं, जहाँ केवल गैर क़ानूनी काम ही होता है, जैसे असलहे बनाना. ऐसे गावों में महिला शिक्षिकाओं की तो बात छोडिये, पुरुष शिक्षक तक सुरक्षित नहीं हैं. आखिरकार सरकारें कर्मचारियों को बिना सुरक्षा का माहोल उपलब्ध करवाए किस प्रकार से बेहतर कार्य की अपेक्षा कर सकती है ?

. मै तो वहाँ से दिल्ली वापस आ गयी लेकिन मेरी सहेली को कल फिर वहाँ जाना था, मै तो सपने में भी वहाँ जाने के बारे में नहीं सोचना चाहती. मै बहुत सीधी बात कहना चाहती हूँ कि जो लोग और मीडिया महिला शिक्षकों को बदनाम करते हैं उसके पीछे केवल एक ही कारण है, कि वे महिलाओं के प्रति पुरानी दकियानूसी सोच से भरे हुए हैं, वे ये बर्दास्त नहीं कर सकते कि महिला धन कमाए, ऐसे में ईर्ष्या और द्वेषवश शिक्षिकाओं का विरोध किया जाता है उनके खिलाफ ऊल जलूल लिखा जाता है जब कि वास्तविक स्तिथि से मीडिया अच्छी तरह परिचित रहता है, मै ऐसे लोगों से केवल इतना कहूँगी कि “ शर्म कीजिये “

*रानी चौधरी *