महात्मा गाँधी – एक छदम अहिंसक
. महात्मा गाँधी ने अपने उपवासो और आमरण अनशन से अंग्रेजो की सत्ता को हिला कर रख दिया, वास्तव में अंग्रेजों के पास गाँधी की इस छदम अहिंसा का कोई जवाब नहीं था, वे अन्त तक जवाब नहीं खोज सके, बहुत सारे आंदोलनों, क्रांतिकारियों के विरोधों, एवं 1942 के दितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों को भारत जैसे उपनिवेश को छोड़ कर जाना पडा .
अंग्रेजो के पास गाँधी के छदम अहिंसा सिद्धांत का कोई जवाब नहीं था, वो उपाय तो खोजते रहे लेकिन अन्त में हार गये. मै आप को इसके पीछे छुपा मनोवैज्ञानिक कारण बताती हूँ.
अंग्रेजो के पास गाँधी के छदम अहिंसा सिद्धांत का कोई जवाब नहीं था, वो उपाय तो खोजते रहे लेकिन अन्त में हार गये. मै आप को इसके पीछे छुपा मनोवैज्ञानिक कारण बताती हूँ.
. असल में अगर मै आप को मारना चाहूँ तो आप के पास कम से कम इतना तो मानवीय और क़ानूनी अधिकार है ही कि आप मुझसे अपनी जान बचाने के लिए अपनी रक्षा कर सकते हो , मुझे मार सकते हो , और ये कानूनी रूप से भी सही होगा , हर इंसान को अपनी जान बचाने का अधिकार है. लेकिन अगर मै अपने को मारने की कोशिश करूँ और इसका इलज़ाम आप पर डालूं कि मेरी हत्या के दोषी आप होंगे तो आप बिना वजह मेरी हत्या के दोष में फंस जाओगे. जब की हो सकता है की आप मेरी हत्या ना करना चाहते हों, मेरी हत्या का दोष ना लेना चाहते हों, लेकिन फिर भी आप मेरी हत्या के दोषी बन जाओगे. असल में ये एक बहुत बड़ी हिंसा है, इस हिंसा का आप के पास कोई जवाब नहीं हो सकता हैं , ये आप के अपनी रक्षा करने के मौलिक अधिकार का भी हनन करती है. आप ने हत्या नहीं की ,लेकिन हत्या के दोष में फंस गये. बस यही था गांधी का अहिंसक आमरण अनशन आन्दोलन का मनोवैज्ञानिक सच.
. अंग्रेज गाँधी की हत्या का दोष नहीं ले सकते थे ,जब की वे हत्या के दोषी भी ना होते, लेकिन उन्हें दोषी माना जाता , अपनी नस्ल पर दाग लगने के भय से अँगरेज़ सरकार गाँधी के सामने हमेशा झुक जाती थी ,अँगरेज़ गाँधी की अधिकांश मांगो को थोड़े बहुत संशोधन के साथ मान लिया करते थे, गाँधी भी अंग्रेजो की इस मजबूरी को अच्छी तरह से समझते थे अतः उनके बीच हुआ हुआ समझौता अधिकांशतः दोस्ताना माहौल में होता था.
. भारत की आजादी के समय जब अँगरेज़ देश से जाने के लिए विभिन्न कागजी कार्यवाहियाँ पूरी कर रहे थे तब भारतीय महान दलित चिन्तक डॉक्टर अम्बेडकर ने मुस्लिमों की ही तरह दलितों के लिए अलग देश की मांग की, डॉक्टर अम्बेडकर का कहना था कि “ अंग्रेजों के जाने के बाद गुलामी केवल अंग्रेजो के हाथों से निकल कर ब्राह्मणों के हाथों में आ जायगी, और दलित आजादी के बाद भी गुलाम बने रहेंगे, अंग्रेजों की गुलामी, ब्राह्मणों की गुलामी से कहीं बेहतर है क्यों कि अँगरेज़ दलितों के प्रति मानवतावादी दृष्टीकोण रखते थे.” ऐसे में उन्होंने दलितों के लिए एक अलग देश की मांग की ताकि 2500 सालो से हो रहे शोषण को समाप्त किया जा सके, क्यों कि सत्ता ब्राह्मणों के हाथ में आने के बाद दलितों की स्तिथि पुनः खराब हो सकती थी.
. डॉक्टर अम्बेडकर की इस मांग से गाँधी तुरंत आमरण अनशन पर बैठ गये, उन्होंने डॉक्टर अम्बेडकर को चेतावनी दी कि अगर उन्होंने दलित लैंड की मांग को वापस नहीं लिया तो वो आमरण अनशन कर के अपनी जान दे देंगे. गाँधी द्वारा आमरण अनशन करते हुए जब कुछ दिन हुए तो डॉक्टर अम्बेडकर विचलित हो गये , वे गाँधी की छदम अहिंसा के मुखौटे को अच्छी तरह समझते थे , उन्हें अपने लोगों की चिंता सताने लगी क्यों कि गाँधी की तबियत बिगड़ने लगी थी और दलितों के प्रति माहोल बिगड रहा था. डॉक्टर अम्बेडकर कई बार गाँधी से मिले और उन्हें पूरी स्तिथि से अवगत करवाया उन्हें समझाया की उनके इस कृत्य से दलितों के विरुद्ध हिंसा भड़क सकती हैं, आप जायज़ मांगों पर अपनी वीटो नहीं लगा सकते. लेकिन गाँधी दलितों की हत्या करवाने पर उतारू थे उन्हे अच्छी तरह से पता था कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो दलितों के विरुद्ध पूरे देश में दंगा फ़ैल जायेगा, लेकिन गाँधी को खून खराबे से कोई मतलब नहीं था, उनका अहिंसा सिद्धांत छदम था और इस सिद्धांत के पीछे एक हिंसक व्यक्तिव था जो अपनी बात मनवाने के लिए लाखों दलितों की हत्या भी करवा सकता था.
. गाँधी के आमरण अनशन के कारण डॉक्टर अम्बेडर को अपनी मांग वापस लेनी पड़ी, लेकिन डॉक्टर अम्बेकर ने स्पष्ट किया कि “ वे अपनी मांग इस लिए वापस नही ले रहे हैं कि वे गलत थे ,बल्कि इस लिए वापस ले रहे हैं क्यों कि उन्हें अपने गरीब, दुखी दलित जनों की सुरक्षा की चिंता है.” इस पूरे वाक्ये से ये स्पस्ट हो जाता है कि वास्तव में अहिंसक कौन था , गाँधी या डॉक्टर अम्बेडकर. अम्बेडकर कहीं जादा अहिंसक थे जब कि गाँधी का पूरा चरित्र यहाँ एक घटना से बेनकाब हो जाता है, गाँधी का आमरण अनशन वास्तव में उनके हिंसक व्यक्तिव की ओर इशारा करता हैं, अगर महान चिन्तक डॉक्टर अम्बेडकर भी अपनी मांग पर अड़े रहते तो भारत इतिहास में हुए एक बड़े नरसंहार के कलंक का बोझ उठा रहा होता.
. गाँधी के अहिंसा आन्दोलन की मनोवज्ञानिक व्याख्या एवं समीक्षा
*रानी चौधरी *
*रानी चौधरी *