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Flipkart, E-commerce धोखाधड़ी का नया पर्यायवाची - रानी चौधरी


Flipkart, E-commerce धोखाधड़ी का नया पर्यायवाची
. बकरीद का दिन, छुट्टी का दिन, थोड़ी देर से उठी, सुबह 7.55 पर अखबार उठाया तो पूरे मुख्य पृष्ठ पर फ्लिपकार्ट का विज्ञापन था , बिग बिलियन डे, विज्ञापन मैंने पढ़ा तो दंग रह गयी, सैमसंग गेलेक्सी टेब 13000/- की जगह पर 1300/- रूपए का ? हैं? ऐसा कैसे हो सकता हैं ? मै लगभग 5 साल से online shopping कर रही हूँ ,इस तरह के धोखा देने वाले काफी विज्ञापन देखे हैं ,लेकिन हर बार मन कहता है की नहीं इसबार सब सही होगा. मुझे Tab की जरुरत थी , खरीदारी का टाइम 8.00 a.m. लिखा था , मैंने तुरंत अपना लैपटॉप उठाया और Flipkart की वेबसाइट खोली ,Steal Deal अभी नहीं थी , मै इंतज़ार करने लगी
. मै सोच रही थी कि जैसे ही Deal आयगी मै तुरंत टेब बुक करवा दूगी, लेकिन Steal Deal जैसे ही स्क्रीन पर आई वो पहले से ही Sold Out थी, वो सारे के सारे प्रोडक्ट जो जिनको पढ़ कर लोग वेबसाइट पर पहुचे थे, वो सब के सब प्रोडक्ट ठीक 8 बजे लॉन्च के साथ ही Sold Out थे. कुछ प्रोडक्ट तो 1 रूपए में बेच रहे थे अखबार में , क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि ये प्राइवेट E-COMMERCE कम्पनियाँ अपने नुकसान पर आप को कुछ दे सकती हैं ? जो फ्लिपकार्ट का लक्ष्य था वो पूरा हो गया , लाखो ग्राहक वेबसाइट पर पहुच गये, वो जो खरीदने गये थे वो तो उन्हें मिला नहीं तो सस्ते के भ्रम में कुछ और कचरा खरीद लिया और बस यही कंपनी चाहती थी.
. मनोविज्ञान ये है कि जब ग्राहक वेबसाइट पर पहुचता हैं तो तब जैसे ही अपने पसंदीदा प्रोडक्ट को Sold Out देखता हैं उसे लगता है कि कीमत इतनी कम है कि प्रोडक्ट हाथो हाथ निकल रहे हैं अगर उसने जल्दी ही कुछ नहीं ख़रीदा तो वो जिंदगी की सबसे बड़ी भूल कर बैठेगा, और तब ग्राहक जाने-अनजाने , मन-बेमन से कोई दूसरा उत्पाद खरीद लेता है और यही कंपनी चाहती है, अच्छे प्रोडक्ट की झूठी Sold Out इमेज़ दिखा कर घटिया माल बेच देती हैं ,ग्राहक साईट पर आया है तो कुछ ना कुछ खरीद कर ही जायेगा, ये उपभोक्ता को चारा दिखा कर मछली पकड़ने जैसा काम है ,उपभोक्ता आता है चारा खाने के लालच में और फंस जाता है धोखाधरी के जाल में, फिर काटा जाता है.


. एक और ट्रिक है, 32%, 42%, 45% डिस्काउंट का झुनझुना, ये कोड आप को मेल किया जाता है या आप के फोन पर SMS से भेजा जाता है, आप प्रोडक्ट की खरीदारी करने साईट पर जाते हैं और प्रोडक्ट पसंद करते हैं लेकिन जब कोड लगाते हैं तो लिख कर आता है कि “ this code is not vailid for this product, please change the product or use another code ”. आप एक घंटे मेहनत कर के कोई चीज़ पसंद करते हैं और जब कोड नहीं लगता तो झुंझुला जाते हैं, प्रोडक्ट आप को बहुत पसंद है , आप उसे हाथ से जाने नहीं देना चाहते, अपना मन कौन मारना चाहता हैं , फिर आप ने 1 घंटा भी बर्बाद किया है ,ऐसे में आप बिना कोड लगाये ही उसको खरीद लेते हो, जब आप 42% डिस्काउंट वाले प्रोडक्ट देख्नते हो तो आप को पता चलता है कि वहाँ तो दुनिया भर का कचरा इकठ्ठा कर के रखा है, इसे तो 42% के डिस्काउंट का पर क्या 80% पर भी नहीं ख़रीदा जा सकता है. ये तरीका भी चारा डाल के मछली मारने जैसा है.
. एक तीसरा तरीका है उसे भी जान लें , इस तरीके में E-COMMERCE कंपनी किसी बेहद प्रसिद्द उत्त्पाद को अविश्वसनीय कीमत पर पोस्ट कर के उसे Sold Out दिखा देती है , जब उपभोक्ता उस उत्पाद को खरीदने के लिए गूगल पर सर्च करता है तो सबसे सस्ता उत्पाद उपलब्ध करवाने के कारण उस वेबसाइट का नाम सबसे पहले आ जाता है, वो जैसे ही लिंक पर क्लिक करता है गूगल को एक विज्ञापन का पैसा मिल जाता है और उपभोक्ता जब वेबसाइट पर पहुचता है तो प्रोडक्ट सोल्ड आउट. उपभोक्ता E-COMMERCE साईट पर पहुच गया अब उसे इस बात का भ्रम हो जाता है कि इस साईट पर उत्पाद बेहद सस्ते हैं, ऐसे उपभोक्ताओं के लिए वहाँ पहले से ही जाल बिछा होता है, Sold Out प्रोडक्ट के साथ किसी दुसरे प्रोडक्ट को, जो कम प्रसिद्द होता है या कम बिकता है साथ में उपलब्ध दिखाया जाता है , उस प्रोडक्ट को Sold Out प्रोडक्ट की तुलना में बेहतर बताते हैं, इसे नया बताया जाता है. उपभोक्ता इन सब के चक्कर में फंस कर उसे खरीद लेता है. ये चारा डाल कर मछली मारने का तीसरा तरीका है.
. एक चौथा तरीका भी है ,इसे अभी हाल में E-COMMERCE कंपनियों ने इस्तेमाल करना शुरू किया है , इस तरीके में कोई भी फ्लॉप कम्पनी अपने न्यू लॉन्च प्रोडक्ट्स जैसे एंडरायड फोन को ऐसी ही E-COMMERCE वेबसाइटों के सहयोग से लॉन्च करती हैं, लोगो को हफ्ता भर पहले मेल द्वारा, SMS द्वारा बताया जाता है कि एक धमाकेदार फोन एक्सक्लूसिवली फला-फला वेबसाइट पर लॉन्च होने जा रहा है, ये फोन इतना जबरदस्त है ,इतना जबरदस्त है कि इससे पहले ना तो ऐसा फोन आया है , और ना अब कभी आने वाला है, अगर आप ने इसे नहीं ख़रीदा तो समझ लीजिए कि आप अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती करेंगे, कभी अपने दोस्तों से आंख नहीं मिला सकेंगे क्यों कि ये फोन उनके पास होगा और आप कि नज़र नीची हो जायगी.
. हफ्ते भर तक ये मेल और SMS का तमाशा करने के बाद जब प्रोडक्ट को लॉन्च किया जाता है तो उसमे जो चालबाजी की जाती है वो ध्यान देने योग्य है. लॉन्च के समय 4GB, 8GB इंटरनल मेमोरी वाली अपेक्षाकृत सस्ती Series को Sold Out दिखाते हुए 16GB वाली महंगी Series पहले बेचीं जाती है, उपभोक्ता को इससे ये भ्रम पैदा होता है कि 4GB, 8GB इंटरनल मेमोरी वाली Series तो हाथों- हाथ बिक गयी कहीं 16GB भी हाथ से ना निकल जाये, इस लालच में वो महंगा कचरा फोन खरीद लेता है, जैसे ही 16GB Series बिक जाती है 4GB और 16GB को Sold Out दिखाते हुए 8GB फोन को लॉन्च कर दिया जाता है, उपभोक्ता अपने को किस्मत वाला समझता है कि अच्छा हुआ जो 8GB Series बची हुई है, सस्ती वाली बिक गयी , महंगी वाली बिक गयी, ये 8GB Series बची हुई है ये खरीद हूँ वर्ना ये भी गयी, अब 8GB Series के बिकते ही 4GB को सबसे अन्त में लॉन्च कर दिया जाता है,लिमिटेड स्टॉक बताया जाता है , सस्ता होने के कारण और लिमिटेड स्टोक की घबराहट में उपभोक्ता जल्दी से जल्दी इसे खरीद लेना चाहता है और जल्दी ही सारा कचरा वेबसाइट से साफ़ हो जाता है , E-COMMERCE साईट और फोन-कंपनी के वारे न्यारे हो जाते हैं.
. तरीके और भी हैं लेकिन यही 4 मुख्य रूप से इस्तेमाल में आ रहे हैं ,असल में E-COMMERCE को लेकर कोई बेहतर कानून इस देश में नहीं हैं ,इन पर कोई लगाम नहीं है , ना ही ये R.T.I. के दायरे में आती हैं, तो जिनता फ्रोड कर सकती हैं करती हैं , लकिन चतुराई से , नज़र बचा कर. आज के भारत में प्रचार से सरकारें बन रही हैं ,तो प्रचार के दम पर फोन बेचना कौन सा कठिन काम है , इतना झूठ बोलो ,इतना झूठ बोलो की लोगो को वो सच लगने लगे , आज पूरा भारत इसी मनोविज्ञान पर लूटा जा रहा है.
. E-commerce कंपनियों के उपभोक्ता सिदान्तों की मनोविश्लेषणवादी समीक्षा.
*रानी चौधरी *